Friday 20 September 2019

“ KURU RASHTRA KE UTTARADHIKARI “ – by Biranchi Narayan Muduli



यह कथा आपको जय संहिता (महाभारत ) में नहीं मिलेगी, परन्तु यह कथा जय संहिता की हि है... प्राचीन समय में भारतवर्ष के उन्नत और विशाल महाजनपदों में जहाँ म्लेछ अपनी शक्ति और घुसपैठ बढ़ा रहे थे, वहीं दूसरी तरफ बुद्धिजीवीयों में हो रहे विश्वासघात के कारण प्रत्येक महाजनपद गृहयुद्ध के कगार पर था |
यह वह समय था, जब भारतवर्ष का सबसे सम्पन्न और धनी महाजपद हस्तिनापुर अपने स्वर्णिम समय को भोग रहा था, जहाँ का राजकुमार सुयोधन अपने चचेरे भाई भीम पर अपने प्राण न्योछावर करता था, और पारिवारिक समस्या होने के उपरान्त भी वह कुंती के पुत्रों को प्रत्येक राजसी सुख देना चाहता था, वह किसी के ऋण से बंधा हुआ था, परन्तु परिस्थितियों ने दोनों को अलग अलग स्थान पर लाकर खड़ा कर दिया था, जहाँ अब वह भाई नहीं शत्रु बन चुके थे और इसी प्रतिशोध की अग्नि को साक्षी मानकर अर्जुन ने भारतवर्ष का महान धनुर्धर बनने का निर्णंय लिया |
क्या सच में अर्जुन चरम योद्धा की उपाधि प्राप्त अतिमहाअतीरथी की तरह प्रत्येक युद्ध में लड़ता था? ..... क्या मत्त्स्य प्रदेश में बनने वाली भारतवर्ष की सबसे मजबूत तलवारों की सिंधु प्रदेश हड्डपा में हो रही तस्करी को अर्जुन रोक पाएगा?.... जिसके पीछे दुर्योधन का अपना राजनयिक स्वार्थ छुपा हुआ था...अर्जुन भारतवर्ष के संसद में इसे उचित कैसे ठहराएगा? या फिर भाईयों में हो रहे मतभेद और षड्यन्त्र इस भूमि को किसी अनदेखे युद्ध की तरफ धकेल देगा?




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