Monday 8 July 2019

"Bikhre Khayal" By Santosh Kumar

‘बिखरे ख़याल‘ किताब की रचना के मूल में एक प्रयोग छिपा है, एक ऐसा प्रयोग जहाँ दो भिन्न भाषा साहित्य की विधाओं को एक जगह लाकर एक किताब की शक्ल दी गई है। यहाँ उर्दू भाषा साहित्य की काव्य विधा गज़ल और नज़्म के साथ ही हिंदी भाषा साहित्य की काव्यधारा कविता रूप में प्रवाहित हो रही है। ‘बिखरे ख़याल‘ में आप जहाँ बेहद रूहानी गज़लों एवं नज़्मों से दो-चार हो ख्वाबों की एक अलग दुनिया में सैर करेंगे, वहीं कविताओं के माध्यम से अपने विचारों को आप चिंतन के खुले आकाश पर उड़ान भरता हुआ महसूस करेंगे। काव्य की एक विशेषता यह होती है कि यह बहुत निजी अनुभूतियों से जुड़ा होता है। कोई गज़ल या कविता आप को अपने भावों के वेग से हंसा, रुला या आनंदित कर सकती है लेकिन साथ ही कई बार यह कई लोगों पर कोई प्रभाव नहीं छोड़ती क्योंकि भाव की अल्पता के कारण वो इनसे जुड़ नहीं पाते। यहाँ मैं किसी कवि की उस पंक्ति का उल्लेख कर बात खत्म करना चाहूंगा कि कवि कहते हैं ‘‘जिनके पैर न पड़ी बिवाई, ते का जाने पीर पराई‘‘।।



इस किताब के लेखक सन्तोष कुमार मूल रूप से कटिहार (बिहार) के निवासी हैं, लेकिन स्थायी तौर पर दिल्ली में रह रहे हैं। इन्होंने लोक प्रशासन और हिंदी साहित्य विषय में स्नातकोत्तर (एम.ए) किया है साथ ही भारतीय धर्म दर्शन के क्षेत्र में भी इनकी मजबूत पकड़ है ।साहित्य के साथ दर्शन पर आप विगत कई वर्षों से स्वतन्त्र अनुसंधान का कार्य कर रहे हैं वर्त्तमान में लेखक साहित्य सृजन के काम में पूर्ण रूप से समर्पित हैं।

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Website: Author of " Bikhre Khyal "

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