Tuesday 19 March 2019

"फिर, क्यों उसने मना किया...?" - ओमकार चौहान

जूनून जब सिर पर हो तो मनुष्य सबकुछ भूलकर वो सबकुछ करने लग जाता है जिससे उसे संतुष्टि होती है । अब चाहें वो कार्य उसके लिए लाभदायक हो या हानिकारक उसे इसकी कतई चिंता नही होती है , और यदि जूनून किसी से किये गए प्रेम में अपमान का हो तो मनुष्य किसी भी परिस्थति से गुजरने में कोई संकोच नही करता है । यदि उसके मन की संतुष्टि के लिए उसे गलत कदम उठाना पड़ता तो वह उसे अपना लक्ष्य समझकर पीछे नही हटता है , और कभी - कभी तो वह अपने जीवन को भी नष्ट कर लेता है । चाहें ऐसा करने से उसकी समस्या का समाधान हो या ना हो । कितना अच्छा हो जब वह व्यक्ति अपने जूनून को लगातार अपने भविष्य के लिये एक हथियार की तरह इस्तेमाल करे तो निश्चित ही उसे प्रेम में किय गए अपमान का बदला भी मिल सकेगा और अपने भविष्य में सफलता भी मिल जायेगी । ऐसी सफलता जिससे वह अपने जीवन में भौतिक जगत के अनेक सुखों को भोग सकता है ।


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