Sunday 18 August 2019

"Aaj Bhi Shayad" By Dr. Om Prakash Pandey

वैयक्तिकता, स्वच्छन्दता तथा सामाजिक सरोकारों को अपने में समाहित किये हुए ‘आज भी शायद‘ डा0 ओम् प्रकाश पाण्डेय का तीसरा गजल संग्रह है। इस संग्रह की गजलें जिन्दगी के समस्त पहलुओं को स्पर्श करती हंै।
जिन्दगी की अबूझ पहेली को सुलझाते हुए जिन्दगी एक ऐसे मोड पर आ पहॅुची है जहाॅ प्रयास से पहले ही परिणाम की अनिििश्चतता नैराश्य भाव को प्रदशर््िात कर देती है-
                                                               
                               ‘सुलझेगी नहीं जिन्दगी की पहेली, हमसे आज भी शायद।‘

जिन्दगी की पहेली का अनसुलझापन, उसकी अनिििश्चतता और उसमें अविश्वास का प्रतिफल देखिए-
                                                 
                                  ‘न होगा जिन्दगी से कोई करार, हमसे आज भी शायद।‘

‘मिलना क्या बिछडना क्या‘ (डा0 पाण्डेय के दूसरे गजल संग्रह) की अन्य मनस्कता ‘आज भी शायद‘ में शून्य सम्भाव्यता में परिणत हो चुकी है उसका विसंगति बोध, आत्मनिर्वासन की सीमा तक पहुॅचने के बावजूद सपनों को पलकों पर सजाने तथा उन्हें आसमान में उडान भरने की सलाह देती डा0 पाण्डेय की ये गजल रचनाएं आदमी को जिंदगी के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए उत्साहित करती हैं।

                                        ‘‘उडान भरने दे, आसमाॅ में अपने सपनों को।
                                          बेवजह पलकों पे इन्हें, क्यों सजाये बैठा है।।"

नई गजल की परम्परा की जो ध्वनि ‘मिलना क्या बिछड़ना क्या‘ में ध्वनित हो रही थी, वह ‘आज भी शायद‘ में बढ गई है- परिणाम और घनत्व दोनों में।


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