Wednesday 7 August 2019

‘मन के मनके‘ By Anjana Chandak

लिखें या नहीं............. पर हम सबकी एक डायरी होती है।
(शश्श्श..............!) वो जो हमारे मन की बात सहेजती है, है ना?
ये ‘मनके‘ मेरी उसी डायरी के पन्ने हैं।
मेरे मन के पटल पर भीगे रिश्तों से छलकते प्यार को, अस्तित्व की धुरी की तलाश को, अधूरे इश्क़ वाली दास्तान को, आक्रोश की छटपटाहट को, मन्नतों की दीवार फाँदती बंदगी की आहट को...
मेरे हर अनुभव को समेटकर इन्हीं पन्नों ने मेरा कंपकपाता कलम वाला हाथ थामा।
उकेरे गए चित्र, बिखरी पंक्तियाँ और ढेरों ग़लतियाँ, सबकी ज़िम्मेदार मैं हूँ। वैसे भी मन व्याकरण, नियम और परिभाषाओं में कहाँ बंधता है?
जो ये चित्र हैं, वो शायद उन भावों के जनम पर मेरे इंतज़ार की बेचैनी को ढकते पैरहन हैं।
अपने मन की डायरी आपके साथ साझा कर के, मैं तो अपने अंतर में पड़ी दीवारों से मुक्त हो गयी हूँ।
‘झंझोड़ अपनी हर सजावट को
ज़रा रूह की धूल झाड़ लीजिए,
गर ज़िंदगी क़रीने से जीना हो तो
बेतरतीबी की आदत डाल लीजिए।
बस यही है मेरे ‘मन के मनके‘ की पृष्ठभूमि।

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