इस उपन्यास के माध्यम से लेखक ने समाज में फैली वेश्यावृत्ति, शराब का अति सेवन, पैसों का लोभ आदि बुराईयों का वर्णन किया है। इसके साथ-साथ उन्होंने ‘शेखर’ के माध्यम से यह बताया है कि जो व्यक्ति अपनी कामयाबी के पीछे हाथ धोकर पड़ जाता है और पीछे मुड़कर नहीं देखता, उसे कामयाबी शत-प्रतिशत मिलती तो है मगर वह अपने रिश्तेदारों, मित्रों आदि से अलग हो जाता है।
इन्सान का बचपन का सपना नहीं होता कि वह बड़ा होकर एक बुरा इन्सान बनेगा या कोई महिला शादी-शुदा होने के बावजूद वेश्यावृत्ति के दलदल में फँसना चाहती बल्कि उनके हालात उन्हें ऐसा करने पर मजबूर कर देते हैं। पेट की आग, गरीबी, बच्चों का पालन-पोषण आदि मजबूरियाँ भी इन्सान को शैतान व महिला को वेश्या बनने पर मजबूर करती हैं। कोई शराब इसलिए नहीं पीता कि उसको अच्छी लगती बल्कि उसमें अपने वर्तमान का सामना करने की क्षमता नहीं होती। जीवन की समस्याओं से परेशान होकर ही व्यक्ति शराब पीता है। पैसे और शोहरत से इन्सान का जीवन सुखमय नहीं होता बल्कि उसके लिए परिवार, मित्र, सगे-संबंधी भी महत्व रखते हैं। व्यक्ति पैसों से सुखी नहीं रह सकता बल्कि सुख को बाँटने के लिए परिवार का होना भी जरूरी है।
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