Thursday 13 June 2019

"युवाओं की सफलता के मूल मंत्र" By Rajendra Singh Sengar

युवाकाल जीवन का एक सर्वाधिक प्यारा समय है। इस आयु में उनकी आंखों में सपनों का बसेरा होता है। किंतु हमारे देश में विडम्बना यह है कि युवाओं का युवापन इतना आकर्षक नहीं है। हमारे देश में जब एक युवा शिक्षा प्राप्त कर कर्म के क्षेत्र में प्रवेश करता है तो उसे जिन अनिश्चितताओं का सामना करना पड़ता है वह स्थिति एक युवा के लिए अत्यंत कष्टकारी और असहनीय होती है। ऐसे में युवाओं पर करुणा जागती है। एक पिता का सा हृदय इन युवाओं को सीने से लगाकर उनकी मानसिक पीड़ा को हर लेना चाहता है। मन की जब ऐसी गति कई बार हुई तो यह निश्चय किया कि युवाओं की पीड़ा को हरने के लिए कुछ ऐसे नुस्खे तैयार किए जाएं जिससे उनके दिग्भ्रम की स्थिति को ठीक किया जा सके और वे प्रसन्नचित्त होकर अपनी जीवनयात्रा शुरू कर सकें।

स्वामी विवेकानंदजी, जो युवाओं के आदर्श थे, ने कहा था कि- ‘देश के उत्थान के लिए युवाओं को उठना चाहिए, जागना चाहिए और उद्देश्य प्राप्ति तक रुकना नहीं चाहिए’। अत: मैंने इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए इस पुस्तक के माध्यम से उन्हें प्रेरित करने का प्रयास किया है। इसके लिए माता पिता, शिक्षक और सरकार की भूमिका को अलग अलग अभ्यासों के अंतर्गत समाहित किया गया है।
इस गुरुतर कार्य के लिए मुझे अनुसंधान में जुटना पड़ा। मैंने इसके लिए सैकड़ों युवाओं से उनसे संबन्धित विषयों पर वार्ताएं कीं और उनके मन के मर्म को टटोलने की कोशिश की। मैंने उनकी समस्याओं, उनके सपनों, उनके प्रिय-अप्रिय विषयों, उनकी राष्ट्र की परिभाषा, धर्म और जाति के विषय में उनके मत, उनके मानवतावाद और उनकी विकास विषयक अवधारणाओं को जानने की कोशिश की। मन में एक विचार आया कि आज की युवा पीढ़ी में आध्यात्मिक सोच विकसित करने की कोशिश की जाए। अतएव इस पुस्तक का पूरा कथानक आध्यात्मिक दृष्टिकोण से ओत-प्रोत है। मेरा मानना हा कि यदि आज का युवा अपने दृष्टिकोण में आध्यात्मिक परिवर्तन करने में सक्षम हो जाए तो हमारा देश पुनः पुरातन गौरव प्राप्त कर सकता है। हमारा यही युवा विवेकानंद हो सकता है, राम, कृष्ण, राणाप्रताप, डॉ. हरगोविंद खुराना, डॉ. अब्दुल कलाम, भगतसिंह और सुभाषचंद्र बोस हो सकता है। आध्यात्मिक बनकर ही हमारा देश विश्व का नेतृत्व कर सकता है और तेजी से तरक्की के मार्ग पर आगे बढ़ सकता है।

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