उपन्यास “राम तजें क्या होगा रे” का केंद्रीय कथानक आश्रम वासिनी सीता
के निर्वासित जीवन से विकसित होता है । उनकी मनोaभूमियों की विभिन्न छवियों का दिग्दर्शन
उपन्यासकkर विनोद
श्रीवास्तव ने मनोयोग पूर्वक किया है । उपन्यास में विंध्यभूमि
के स्थानों का परिचय सप्रमाण प्राप्त होता है । जिससे हमारी स्मृतियाँ
अतीत के आलोक में जगमगाने लगती हैं । यह उपन्यास समकालीन उपन्यास लेखन में
गज़ब का हस्तक्षेप करता है । वैदिक समय को कथा रचना के माध्यम से पा लेने का अर्थ
है -अपनी उन स्मृतियों को पा लेना जो कास्मिक और वैश्विक चेतना से जोड़ती हैं ।
शंबूक वध की
कथा को नकारते हुए लेखक का उद्दे~श्य उस समय की अयोध्या के वर्णव्यवस्था के तथ्यों से परिचित कराना है। पाठक का
परिचय पुरुष सूक्त के प्रवृत्ति आधारित चित्रगुप्त के भाष्य से होता है । इस भाष्य
से मनुवंशियों और यम वंशियों में ठन जाती है।
काल पुरुष
.. सहस्त्रार्जुन की महिष्मती ,कायथा ,मध्यगढ़ ,पाताल दर्शन ,पाताल द्वार ,आश्रमों के संबंध नें जानकर पाठक के
सामने वह युग उजागर हो जाएगा जब भारत में जन्म जात वर्ण व्यवस्था का
विरोध किया जा रहा था ।
लव कुश द्वारा
अश्वमेध के अश्व का पकड़ा जाना कोई बच्चों का खेल नहीं था ।
निश्चित
ही सीता जी और उनके अबोध मासूम बच्चों की पीड़ा से पाठकों की आँखें भर
जाएंगी । राम की पीड़ा भी पाठकों को रुला देगी। क्योंकि उपन्यास में सीता के
परित्याग का कारण अयोध्या की प्रजा का विधि सम्मत लोकोपवाद बताया गया है
।
उपन्यास के
मुख्य पात्र राम ,सीता, लव कुश
वाल्मीकि ,चित्ररथ धर्म ध्वज वसंती ,लक्ष्मण भारत आदि हैं । मुख्य आकर्षण वाले अध्याय हैं ----लव कुश द्वारा
अयोध्या के महलों के सामने रामायण का गान तथा 100 वर्षीय जाबालि ऋषि द्वारा वर्षा काल में खुले आकाश के नीचे सरयू तट पर निराहार
मौन तप जिसे देख कैकई, क¨शल्या, सुमित्रा सहित राज परिवार के आँसू बहने
लगते हैं । उपन्यास प्रशंसा योग्य है । ई बूक भी प्रकाशित की गई है । वितरण अमेज़न
फ्लिपकर्त ब्लू रोज आदि द्वारा किया जा रहा है । पृष्ठ संख्या 212 है ।कीमत 208 रुपए ।
आधुनिक युग में एक श्रेष्ठ पुस्तक जो रामायण काल की कथा को आधुनिक चेतना देती है । किसी ने कविता में फ़ेस बूक पर कहा भी है ---लव कुश भटक रहे थे वन में /सिंहासन पर राजा राम /ज़ोर से बोलो जय श्री राम ----सीता रोटी जाती वन में / सिंहासन पर राजा राम /ज़ोर से बोलो जय श्री राम ---उपन्यास में सीता के साथ -साथ राम की पीड़ा भी उजागर की गई है किन्तु अन्याय के आगे समर्पण नहीं किया गया है । श्रेष्ठ उपन्यास । आँसू ला देता है । ---नीलिमा वर्मा ,नासिक
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