Tuesday 14 May 2019

“जिया – रे” By Piyusha Chandrakar

उम्मीदों कि नई किरणें
 
     जब हमें बचपन  में  कोई चोट  लगती है तो हम उस चोट कि निशान और उस जगह को कभी नहीं भूलते । बल्कि उस निशान को देख कर हमारी  बचपन की सारी यादें ताजा हो जाती हैं । जिया के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ कि कुछ लोगों द्वारा कही गई   बातें उसके दिलों-  दिमाग में इस तरह बैठ गई थी. कि  वो सारी बातें उसे भावनात्मक रूप से ठेस पहुँचा रहीं थीं, ये सारी बातें उसके  मन में खुद को लेकर (negative thoughts) नकारात्मक सोच पैदा कर रही थी । जो उसके और उसके परिवार के लिए बिल्कुल भी सही नहीं है ।अगर किसी व्यक्ति में कोई कमी तो इसका ये मतलब नहीं कि कोई दूसरा व्यक्ति उसके बारे में कुछ भी कहें । और  हम सब की यहीं समस्या है कि हम कभी सोचते नहीं कि हमारी बातों से किसी को चोट पहुँच सकतीं हैं, बस जो मन में आया उसको बोल देते हैं । अगर बात कड़वी हो तो और भी ज्यादा  चुभती हैं।  और ये सभी बातें हमें  मानसिक रूप से ठेस पहुँचती है। 
 
 In this story.. जिया  के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था । वो अपनी परेशानियाँ और लोगों द्वारा कही गई बातें. किसी को बता नहीं पा रहीं थीं । जिया मन ही  मन उदास रहने लगी थी। 
 मन ही वह माध्यम है जो कि एक व्यक्ति को आन्तारिक ऊर्जा प्रदान करती हैं जो उसे शारीरिक और मानसिक रूप से मजबूत बनाये रखता है। परन्तु  जब  बातों का प्रभाव मन  पर  ही पड़ें तब ।
 इन सब बातों से निकल कर क्या  जिया  एक  नई शुरुआत कर पाएगी । और उसके  उम्मीदों को क्या  एक नया उड़ान मिल  पाएगी ? 

 

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