आनंद
रात सोच कर सोई थी…. आज देर तक सोऊँगी। छुट्टी में सोने का आनंद आहा।
पर ये क्या..? नींद तो रोज की तरह तड़के ही खुल गई। घड़ी में पांच ही बजे थे अभी तो। देर तक सोने की इच्छा का मनुहार करते हुए, मैं फिर सोने की कोशिश करने लगी। अचानक बालकनी से आती, किसी चिड़िया की मधुर आवाज ने, मुझे बिस्तर से उठने पर मजबूर कर दिया। आहिस्ता से मैंने बालकनी का दरवाज़ा खोल कर देखा… वहां एक प्यारी सी नन्हीं सी चिड़िया, पानी के बर्तन में अठखेलियां कर रही थी। आहा… कितनी प्यारी लग रही थी वह।कभी वह पानी पीती…… कभी पानी में अठखेलियां करती….l
मैं मंत्र मुग्ध सी, अपलक निहार रही थी उसे।
मेरी तो मार्निंग वाकई…. फील गुड वाली मार्निंग हो गई थी। बिना कुछ कहे… या जताए वह नंन्ही सी चिड़िया मेरे चेहरे पर मुस्कान दे रही थी….. शायद वह आनंद बांट रही थी मेरे साथ..। मैं भी उस अनमोल आनंद को चुपचाप समेट रही थी, खुद में। हां….. कहाँ मिलेगा ऐसा मासूम, निश्छल आनंद?
अरे…. तभी वह फुर्र से उड़ गई.। मैं उसे दूर तक देखती रही….. मुस्कुराती हुई। मानो कह रही थी…. आ जाया करो यहां, जब जी चाहे।
हमेशा रखती हूं मैं यहाँ….. पानी से भरा बर्तन।
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