‘‘ज्ञानसिंधु‘‘ अर्थात ज्ञान का सागर….. आप सोच रहे होंगे कि ऐसा नाम कोई लेखक अपनी किसी धार्मिक पुस्तक का कैसे रख सकता है? क्योंकि मैं कोई तुलसीदास या फिर स्वामी विवेकानंद तो हूँ नहीं अतः ऐसी बातों का किसी के भी मन में उठना स्वभाविक है।इस ग्रन्थ के बारे में चर्चा करने से पहले मैं सभी प्रिय बन्धुगणों को बताना चाहूंगा कि मैं तो केवल एक माध्यम हूँ जबकि कर्ता तो कोई और ही है क्योंकि बिना उनकी इच्छा के कुछ भी संभव नहीं हो सकता।इसके अलावा मैं इसका श्रेय यदि किसी को देता हूँ तो वह मेरे परम पूज्य गुरूजी स्वामी परमानन्द (परमानन्द मिशन – बर्धमान, पश्चिम बंगाल), स्वामी विवेकानंद, ठाकुर श्री राम कृष्ण एवं त्रैलंग स्वामी जी को देता हूँ क्योंकि आज मैंने अपने जीवन में जो कुछ भी प्राप्त किया है वह सब इन्हीं की देन है एवं इनके द्वारा ही प्राप्त ज्ञान की बूंदों को मैंने संकलित करके ज्ञानसिंधु का रूप दिया है।यह ग्रन्थ मुख्यतः योग एवं अध्यात्म पर आधारित है जो जीवन के हर एक पहलु को छूता है एवं तथ्यों को समझाने के लिए मैंने गीता का सहारा लिया है एवं मधुरता बनाये रखने के लिए गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित रामचरित मानस की चैपाइयों का भी कहीं-कहीं उपयोग किया है।
अपने बारे में मैं क्या कहूँ? लेकिन मैं जानता हूँ कि मुझे यहाँ इसका ज़िक्र तो करना ही होगा, तो चलिए कुछ बताने की कोशिश करता हूँ। मेरा नाम पवन. बी. नंदा है एवं उम्र ३४वर्ष। मैं जिला – मैनपुरी (उत्तरप्रदेश) से ताल्लुक रखता हूँ।
जन्म के तीन वर्ष उपरांत ही मेरे पिता को पश्चिम बंगाल में नौकरी मिल गई और इस तरह मेरे पिता पूरे परिवार के साथ पश्चिम बंगाल में बस गए। मेरी प्रारंभिक शिक्षा और उच्च स्तरीय शिक्षा (एम.बी.ए) बंगाल में ही संपन्न हुई और उसी दौरान युवावस्था से ही मैं स्वामी विवेकानंद के विचारों से प्रभावित होकर रामकृष्ण मिशन से जुड़ गया लेकिन बाद में स्वामी परमेश्वरानन्द (परमानन्द मिशन – पश्चिम बंगाल) के संपर्क में आने के कारण मैंने यहाँ से दीक्षा प्राप्त की।
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